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पृष्ठ:वरदान.djvu/३५

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वरदान
३६
 
[ ८ ]
सखियाँ

डिप्टी श्यामाचरण का भवन श्रान सुन्दरियों के जमघट से इन्द्र का अखाड़ा बना हुआ था। सेवती की चार सहेलिया-रुक्मिणी,सीता,राम-देई और चन्द्रकुँवर-सोलहों सिंगार किये अटलाती फिरती थीं। डिप्टी साहब की वहिन जानकीकुंवर मी अपनी टो लडकियों के साथ इटावे से या गयी थीं। इन दोनों का नाम क्मला और उमादेवी था। क्मला का विवाह हो चुका था। उमादेवी अनी कुंवारी थी। दोनों सूर्य और चन्द्र थीं। मडप के तले डोमनियाँ और गवनिहारिने सोहर और सोहाग अलाप रही थीं। गुलविया नाइन और जमुनी कहारिन दोनों चटकीली साड़ियाँ पहिने, मांग सिंदूर से भरवाये,गिलट के कड़े पहिने,छम-छम करती फिरती थीं। गुलविया चपला नवयौवना थी। जमुना की अवस्था ढल चुकी थी। सेक्ती का क्या पूछना? आज उसकी अनोखी छटा यी। रसीली आँखें श्रामोटाधिक्य से मतवाली हो रहीं थीं। और गुलाबी साड़ी की झलक से चम्पई रङ्ग गुलावी जान पडता था। वानी मखमल की कुरती उस पर खूब खिलती थी। अभी स्नान करके ग्रायी थी,इसलिए नागिन की-सी लटें कों पर लहरा रही थीं। छेड़छाड़ और चुहल से इतना अवकाश न मिलता था कि वाल गुथवा ले। महराजिन की वेटी माधवी छींट का सुन्दर लँहगा पहिने,आँखों मे काजल लगाये,भीतर-बाहर किये हुए थी।

रुक्मिणी ने सेवती से कहा-सिन्नो। तुम्हारी भावन कहाँ है? दिखायी नहीं देतीं। क्या हम लोगों से भी पर्दा है?

रामदेई-(मुसकुराकर) परटा क्यों नहीं है? हमारी नजर न लग वायगी।

नेवती-कमरे मे पड़ी सो रही होगी। देखो अभी खींचे लेती हूँ।

यह कहकर वह चन्द्रा के कमरे में पहुँची। वह एक साधारण साड़ी पहिने चारपाई पर पडी द्वार की ओर टकटकी लगाये हुए थी। इसे देखते