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पृष्ठ:वरदान.djvu/३६

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सखियाँ
 


ही उठ बैठी। सेवती ने कहा-यहां क्या पड़ी हो,अकेले तुम्हारा जी नहीं घबराता?

चन्द्रा-उँह,कौन जाय,अभी कपड़े नहीं बदले।

सेवती-तो बदलती क्यों नहीं? सखियां तुम्हारी वाट देख रही है।

चन्द्रा--अभी मैं न बदलू गो।

सेवती यही हठ तुम्हारा अच्छा नहीं लगता। अब अपने मन में क्या कहती होगी?

चन्द्रा-तुमने तो चिट्ठी पढी थी,आज ही आने को लिखा था न?

सेवती-अच्छा,तो यह उनकी प्रतीक्षा हो रही है,यह कहिए। तभी योग साधा है।

चन्द्रा-दोपहर तो हुई,स्यात् अब न पायेंगे।

इतने मे कमला और उमादेवी दोनों आ पहुँची। चन्द्रा ने घूघट निकाल लिया और फर्श पर या बैठी। कमला उसकी बड़ी ननद होती थी।

कमला-अरे,अभी तो इन्होंने कपड़े भी नहीं बदले। सेवती-भैया की बाट जोह रही है। इसलिए यह भेप रचा है।

कमला-मूर्ख हैं। उन्हें गरन होगी,आप पायेंगे।

सेवती-इनकी बात निराली है।

कमला-पुरुषों से प्रेम चाहे कितना ही करे,पर मुख से एक शब्द भी न निकाले,नहीं तो व्यर्थ सताने और जलाने लगते हैं। यदि तुम उनकी उपेक्षा करो,उनसे सीधे बात न करो,तो वे तुम्हारा सब प्रकार आदर करेंगे। तुम पर प्राण समर्पण करेंगे, परन्तु ज्योंही उन्हें ज्ञात हुआ कि अब इसके हृदय में मेरा प्रेम हो गया,बस,उसी दिन से दृष्टि फिर जायेगी। सैर को जायेंगे,तो अवश्य देर करके यायेंगे। भोजन करने बैठेंगे तो मुँह जूठा करके उठ जायेंगे। बात-बात पर रूटेंगे। तुम रोयोगी तो मनायेंगे,मन में प्रसन्न होंगे कि कैसा फटा डाला है। तुम्हारे सम्मुख अन्य स्त्रियों की प्रशंसा करेंगे। भावार्थ यह कि तुम्हारे जलाने में उन्हें श्रानन्द