ठानी है?’ यह कहकर रोने लगी। विरजन को भी सन्देह हो रहा था कि
अवश्य इनकी कुछ और नीयत है; नहीं तो यह क्रोध क्यों? यद्यपि कमला दुव्र्यसनी था, दुराचारी था, कुचरित्र था; परन्तु इन सब दोषों के होते हुए भी उसमें एक बड़ा गुण भी था, जिसकी कोई स्त्री अवहेलना नहीं कर सकती। उसे बृजरानी से सच्ची प्रीति थी। और इसका गुप्त रीति से कई वार परिचय भी मिल गया था। यही कारण था जिसने विरनन को इतना गर्वशील बना दिया था। उसने कागज निकाला और यह पत्र बाहर भेजा।
यह कोप किस पर है? केवल इसी लिए कि मैंने दो तीन कनकौए फाड़ डाले? यदि मुझे ज्ञात होता कि श्राप इतनी-सी बात पर ऐसे क्रुद्ध हो जायेंगे, तो कदापि उन पर हाथ न लगाती। पर अब तो अपराध हो गया, क्षमा कीजिये। यह पहला कसूर है।
कमलाचरण यह पत्र पाकर ऐसा प्रमुदित हुआ, मानो सारे जगत् की सम्पत्ति प्राप्त हो गयी। उत्तर देने की इच्छा हुई, पर लेखनी ही नहीं उठती थी। न प्रशस्ति मिलती है, न प्रतिष्ठा; न आरम्भ का विचार आता, न समाप्ति का। बहुत चाहते हैं कि भावपूर्ण लहलहाता हुआ पत्र लिखूँँ, पर बुद्धि तनिक भी नहीं दौड़ती। आज प्रथम वार कमलाचरण को अपनी मूर्खता और निरक्षरता पर रोना आया। शोक! मैं एक सीधा-सा पत्र भी नहीं लिख सकता। इस विचार से वह रोने लगा और घर के द्वार सब बन्द कर लिये कि कोई देख न ले।
तीसरे पहर जब मुन्शी श्यामाचरण घर पर आये, तो सबसे पहली वस्तु जो उनकी दृष्टि में पड़ी, वह आग का अलाव था। विस्मित होकर नौकरों से पूछा— यह अलाव कैसा है?
नौकरों ने उत्तर दिया— सरकार! दरवा जल रहा है।