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पृष्ठ:वरदान.djvu/७२

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भ्रम
 

प्रताप तो यह पत्र देकर चलता हुश्रा,रधिया धीरे-धीरे विरनन के घर पहुंची। वह इसे देखते ही दौड़ी और कुशल-क्षेम पूछने लगी- लाला की कोई चिट्ठी आयी थी?

रधिया-जब से गये,चिट्ठी-पत्री कुछ भी नहीं आयी।

विरलन-चची तो सुख से हैं?

रधिया-लल्लू बाबू प्रयागरान जात हैं तौन तनिक उदास रहत है।

बिरजन-(चौंककर) लल्लू प्रयाग जा रहे हैं!

रधिया-हाँ,हम सब बहुत समुझावा कि परदेस माँ कहाँ जैहो।मुद्रा कोऊ की सुनत है?

विरजन-कब जायेंगे।

रघिया-आज दस वजे की टेम से जवाँ हैं। तुमसे भेंट करन आवत रहेन,तवन दुवारि पर आइ के लवट गयेन।

बिरजन यहाँ तक श्राकर लौट गये। द्वार पर कोई था कि नहीं?

रधिया-द्वार पर कहाँ आये,सड़क पर से चले गये।

विरजन-कुछ कहा नहीं,क्यो लौटा जाता हूँ?

रधिया-कुछ कहा नहीं, इतना बोले कि 'हमारे टेम छूटि जैहैं,तौन हम जाइत हैं'

वृजरानी ने घड़ी पर दृष्टि डाली पाठ वजने वाले थे। प्रेमवती के पास जाकर बोली-माता! लल्लू आज प्रयाग जा रहे हैं,यदि आप कहें तो उनसे मिलती आऊँ। फिर न जाने कब मिलना हो,कब न हो। महरी कहती है कि वह मुझसे मिलने आते थे,पर सड़क के उसी पार से लौट गये।

प्रेमवती-अभी न बाल गैंधवाये,न मांग भरवायी,न कपड़े वढले,बस जाने को तैयार हो गयी।

विरजन-मेरी अम्मा! आन जाने टीजिए। वाल गुंधवाने वैदूंगी तो दस यहीं बन जायेंगे।