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वरदान
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भाग समाप्त हुआ । अलीगढ ने चार सौ रन किये। अव प्रयागवालों की वारी पायी,पर खेलाड़ियों के हाथ-पांव फूले हुए थे। विश्वास हो गया कि हम न जीत सकेंगे। अव खेल का बराबर होना कठिन है। इतने रन कौन करेगा? अकेला प्रताप क्या बना लेगा? पहिला खिलाड़ी आया और तीसरे गेंद में विदा हो गया; दूसरा खिलाड़ी पाया और कठिनता से पांच गेट खेल सका; तीसरा पाया और पहिले ही गेंद में उड़ गया;चौथे ने आकर दो-तीन हिट लगाये,पर जम न सफा। पांचवें साहब कॉलेज में एक थे,पर यहां उनकी भी एक न चली। थापी रखते-ही-रखते चल दिये। अव प्रतापचन्द्र दृढता से पैर उठाता,बैट घुमाता मैदान में आया। दोनों पक्षवालों ने करतल-वनि की। प्रयागवालों की दशा अकय-नीय थी। प्रत्येक मनुष्य की दृष्टि प्रतापचन्द्र की ओर लगी हुई थी। सबके हृदय घडक रहे थे। चतुर्दिक सन्नाटा छाया हुआ था। कुछ लोग दर बैठकर ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि प्रताप की विनय हो। देवी-देवता स्मरण किये जा रहे थे। पहिला गेंद आया,प्रताप ने खाली दिया। प्रयागवालों का साहस घट गया। दूसरा आया,वह भी खाली गया। प्रयागवालों का कलेजा नामि तक बैठ गया। बहुत-से लोग छतरी सँभाल घर की ओर चले। तीसरा गेट आया। एक पड़ाके की ध्वनि हुई और गेंट लू (गर्म हवा) की भांति गगन भेदन करता हुआ हिट पर खडे होनेवाले खिलाड़ी से सौ गन आगे गिरा। लोगों ने तालियां वनायीं। सूखे धान में पानी पड़ा। जानेवाले ठिठक गये। निराशों को आशा बँधी। चौथा गेंट आया और पहिले गेंद से १० गन धागे गिरा। पीएडर चौके,हिट पर मटट पहुँचायी। पांचवां गेंट पाया और कट पर गया। इतने में ओवर हुया। बॉलर वदले,नये बॉलर पूरे वधिक थे। घातक गेंद फेंकते थे। पर उनके पहिले ही गेंद को प्रताप ने आकाश में..भेनकर सूर्य से स्पर्श करा दिया। फिर तो गेंद और उसकी थापी मे मैत्री-सी हो गयी। गेंट श्राता और यापी से पार्श्व ग्रहण करके कभी पूर्व का