पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१०८

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मिल रहा है, परन्तु इन इतिहासो में एक भारी त्रुटि यह रह जाती है कि उनकी दृष्टि और भारतीय दृष्टि में अन्तर है वहां वह हमारी बात समझ नहीं सकते वह उसे Superstitiots- अथवा कल्पित बात कह कर टाल देते हैं। इस समय आवश्यकता है कि पढ़े लिखे भारतीय अपने इतिहास का अनुशीलन कर अपनी विद्या को यथार्थ करें।

इस समय यदि देश में संस्कृत भाषा का अधिक प्रचार होने लगे तो संस्कृत साहित्य के मूल आधार पर भारत का आदिकाल से लेकर आज तक का श्रृंखलाबद्ध इतिहास तैय्यार करने के लिये अनेक विद्वान मिल सकते हैं। हमारे ग्रामों में सैकड़ो हस्तलिखित पत्र तथा पुस्तकें भरी पड़ी हैं परन्तु हम नवशिक्षित वर्ग इसे कूडाकर्कट समझते हैं परन्तु धन्य हैं विदेशी लोग जो सात समुद्र पार कर के ग्राम ग्राम घूम इन्हें इकठ्ठाकर स्वदेश भेज देते हैं। यदि हम सच्चे जौहरी है तो इन की परख करना सिखेगें किन्तु यदि हम भूले रहे, तो हमारी इतिहास सामग्री शनैः शनैः सब बाहर चली जायगी। प्रत्येक स्वदेशाभिमानी का कर्तव्य है कि पुराने हस्तलिखित ग्रन्थों, पत्रों, वा लेखों की रक्षा करे तथा योग्यता प्राप्त कर उसे सम्पादित करे।

प्रस्तुत पुस्तक के विचार पूर्वक पढ़ने से निम्नलिखित ऐतिहासिक बातें पाठक जान सकेगें-

(१) श्री हर्ष का राज्य हिमालय से नर्मदा तक था