पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१२

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तो दो चार को छोड़ कर शेष सब राजविप्लव में नष्ट हो गये; अथवा मनुष्यों के चरित की ओर लोगों को अनास्था के कारण किसी ने उनके प्रचार का प्रयत्नही नहीं किया, अतएव उनकी हस्तलिखित प्रतियाँ जहाँ की तहाँ ही पड़े पड़े नष्ट हो गईं। यदि इस प्रकार के ग्रन्थ लिखेही नहीं गये तो उसका यह कारण हो सकता है, कि प्राचीन कवि और विद्वान्, पौराणिक पुरुषों ही को आदर की दृष्टि से देखते थे और उन्हीं को इस योग्य समझते थे, कि उनके विषय में वे कविता लिखें और उसके द्वारा अपनी वाणी को पवित्र करें। लौकिक पुरुषों का चरित लिखना शायद उन्होंने अपनी कवित्व शक्ति और विद्वत्ता का अपव्यय करना समझा था। इसीसे शायद पौराणिक पुरुषों के सम्बन्धमें सैकड़ों काव्य पाये जाते हैं पर दूसरों के सम्बन्ध में उनका प्रायः अभाव सा है। प्राचीन पण्डितों ने राम, कृष्ण, अर्जुन, युधिष्ठिर, नल, पतञ्जलि इत्यादि ही के चरित को ग्रन्थबद्ध करने के योग्य समझा है; दूसरों के चरित को नहीं। इन पुरुषों के चरित में अनेकानेक आश्चर्य्यदायक और उपदेशपूर्ण बातों के कहने का अवसर मिलने और सर्वसाधारण की