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श्री हर्ष


परन्तु इस पर शंका उत्पन्न होती है। बाण कवि "मान्धाता किलैवंविधे व्यतीपातादिसर्वदोषाभिषङ्ग रहितेऽहनि सर्वे पूच्चस्थानस्थितेष्वेवं ग्रहेष्वीदृशी लग्ने भेजे जन्मः" इत्यादि वाक्य में यह कहा है कि हर्ष के जन्मदिन सब ग्रह उच्च के थे। परन्तु ५८९ वा ५९० की ज्येष्ट बदी बारह के ग्रह उच्च के नहीं थे ऐसा प्रतीत होता है, कदाचित् यह हर्ष के राज कवि की अत्युक्ति हो ऐसा अनुमान होता है।

अब हम फिर अपनी मूल कथा के सूत्र को पकड़ेगें। राज्य श्री के विवाह के थोड़े दिन पश्चात् प्रभाकर वर्धन की मृत्यु हूण लोगों ने थानेश्वर पर चढ़ाई की। यह देख प्रभाकर वर्धनने राज्य वर्धन तथा हर्ष को अपने पास बुलाया। उस समय राज्य वर्धन की आयु "हथियार चलाने लायक" अर्थात् लगभग बीस बरस की थी। प्रभाकरवर्धन ने दोनों को सेना तथा अन्य सामग्री दे हूण लोगों को हराने निमित्त भेजा। वह जब हिमालय पर्वत की तराई में पहुचें तो हर्ष की इच्छा वहांपर आमोद प्रमोद करने