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पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१४४

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श्री हर्ष


के दुःखो के कारण बौद्ध हो गया था। कन्नौज के सिंहासन पर किसको बैठाना, यह निश्चित करने के लिये, कन्नौज से थोड़ी दूर रहने वाले बोधिसत्व अवलोकितेश्वर के मन्दिर में सब गये। इस साधु ने यह निर्धारित किया कि राज्यश्री कन्नौज पर राज करे और हर्ष उसका सहायक रहे, परन्तु वह राजा कि पदवी न ग्रहण कर केवल 'राजपुत्र शिलादित्य' से ही अपने आपको सम्बोधित करे । चीनी पुस्तक 'फाङ्ग चिह' में भी ऐसा लिखा है कि इसके बाद हर्ष अपनी विधवा बहिन के साथ राज्य कार्य करता था। देवगुप्त की मृत्यु के पश्चात् थोड़े काल के लिये हर्ष ने उसका राज्य अपने अधीन रखा होगा तथा उसके वास्तविक उत्तराधिकारी माधवगुप्त को भी नहीं दिया ऐसा बाण के "अथालोच्य तत्सर्वमवनिपति स्वीकर्तुं यथाधिकारमादि देशाध्यक्षान् " इत्यादि वाक्य से प्रकट होता है । हर्ष ने मालवा राज्य का धन तथा सिंहासन अपने अधिकारियों के हाथ में सौंप दिया था। माधवगुप्त तो हर्ष के जीवन में उसका सहवासी ही रहा होगा। बहुत