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श्री हर्ष


उल्लेख है। इस पर से यह प्रकट होता है कि शशाङ्कगुप्त राजा इ. स. ६१९ तक अपने राज्यमें स्थित था। अब ऐसा अनुमान हो सकता है कि या तो शशांक गुप्त ने राज्यवर्धन तथा कुमार गुप्त के वधमें जो युक्ति की थी वही हर्ष के सामने भी की होगी अथवा हर्ष ने बौद्धधर्म के प्रभाव से उसे क्षमाकर वैर लेने के विचार का परित्याग किया होगा। परन्तु हर्ष ने इ० स० ६४३ में जब गंजम अथवा कंगोड़ पर चढ़ाई की थी तब शशाङ्कगुप्त का राज्य भी इसके आधीन आ गया होगा ऐसा कहा जा सकता है। इस सम्बन्ध में अधिक लेख तथा इतिहास न प्राप्त होने से अभी तक निश्चितरूप में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

हर्ष के समस्त विजयी जीवन में एक ही हार का उल्लेख है। जिस प्रकार गुप्तसम्राट समुद्रगुप्त ने दक्षिण मेंहर्ष की हार पांव बढ़ाना चाहा था, उसी प्रकार हर्षने भी नर्मदा के दक्षिणमें अपना राज्य विस्तार का प्रयत्न किया था। इस समय चालुक्य वंश का राजा सत्याश्रय, द्वितीय