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श्री हर्ष


पुलकेशी महाराष्ट्र का स्वामी था और हर्ष का एक बड़ा प्रतिस्पर्धी था। शिलालेखों से पता चलता है कि उसकी राजधानी वातापि (आजकल जिसे बादामी कहते हैं) थी। हुयेनत्सङ्ग के कथनानुसार उसकी राजधानी कभी, नासिक भी होगी। यह राजा बड़ा बलवान तथा साहसी था। वह हर्षके साथ ही अर्थात्इ ० स० ६०८ में गद्दी पर बैठा। हर्षने इ० स० ६२० में उस पर चढ़ाई की, परन्तु पुलकेशी द्वितीय ने नर्मदा पर इतना दृढ़ प्रबन्ध किया कि हर्षको निराश हो लौटना पड़ा। इस सम्बन्ध में ह्युयेनत्सङ्ग लिखता है कि "इस समय महाराजा शिलादित्य (हर्ष) पूर्व से पश्चिम तक हमले करता था और इसके आसपास के सब प्रदेशों के राजा उसका आधिपत्य स्वीकार करते थे परन्तु महाराष्ट्र उसके आधीन नहीं हुआ। ह्युयेनत्सङ्ग के जीवन चरित्रमें भी लिखा है कि "शिलादित्य राजाके प्रवीण होने तथा उसके सेनापतियों के सदा विजय लाभ करने पर भी इन की पुलकेशी द्वितीय के सामने कुछ भी नहीं चली, इस समय भारत वर्षमें एक इसवी सन में सिंहासनारूढ़ राजे राज्य