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श्री हर्ष


रखता था इस लिये विरोधियें ने उसका वध करने को उसे उकसाया था। मठ को भी इन्हीं लोगों ने आग लगाई थी। हर्ष ने इन में से कई षड्यंत्रकारियों को दण्द किया।

कन्नौज की सभा विसर्जन कर हर्ष ह्युनत्सङ्ग को ल कर प्रयाग पहुंचा । बहुत काल से यह प्रथा चली आती थी कि राजा प्रत्यक पांच वर्ष पश्चात् प्रयाग में एक महा सभा कर सब धर्मों के अनुयायियों तथा गरीबों को असंख्य वस्तुएं दान करता। इसी प्रथानुसार हर्ष इ. स. ६४३ में छठ्ठी बार प्रयाग आया और एक बड़ी सभा की। इस समय भिन्न भिन्न स्थानों के लगभग ६ लाख मनुष्य उपस्थित थे और ७५ दिन तक भिन्न भिन्न क्रियायें की गई। इस काल में असंख्य वस्तुओं का दान हुआ। सब क्रियाओं के समाप्त होने के दस दिन वाद ह्युयेनत्सङ्ग ने अपने देश को जाने की तैय्यारी की। लम्बे प्रवास निमित्त हर्ष ने और कुमारराज ने तीस हज़ार सोने के और दस हज़ार चान्दी के सिक्के हाथी पर लाद दिये