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पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१८०

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श्री हर्ष

भारतवर्ष से बाहर हर्ष का सम्बन्ध चीन से था यह बात पूर्व कही जा चुकी है। यदि एक सामान्य दृष्टिपात किया जाय तो हम कह सकते हैं कि नर्मदा के उत्तर में पूर्व से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक लगभग सब ही स्थलों पर हर्ष की विजय पताका फहरा चुकी थी।

भारतवर्ष के राजे निरे विद्याप्रेमी ही नहीं थे किन्तु उन में से कई, कई विषयों के पण्डित माने जाते थे। चक्रवर्ती सम्राट हर्ष के सम्बन्धसाहित्यकार राजा हर्ष कवि के रुप में में विस्तार पूर्वक लिखने के अनन्तर, अब हम साहित्यप्रेमी हर्ष के विषय में लिखकर यह चरित्र पूर्ण करेंगे। हर्ष का साहित्य से पुप्कल प्रेम था इस के दरबार में अनेक साहित्य प्रेमी लेखक रहते थे जिन्हे धनादि से भी महाराज से सहायता मिलती थी। इन में 'कादम्बरी और हर्ष चरित्र' का लेखक बाण और 'सूर्यशतक' का लेखक 'मयूर' मुख्य थे। हर्ष स्वयं भी महाकवि की पदवी से विभूषित किया जाता है। 'रत्नावली' 'नागानन्द' तथा 'प्रियदर्शिका'