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तैलप के अनन्तर सत्याश्रय[१] को चालुक्य-वंश की राजगद्दी मिली। वह परशुराम के समान धनुर्विद्या में कुशल था। उसके अनन्तर जयसिंह[२] वहाँ का राजा हुआ। उसने बहुत दिन तक राज्य किया। उसके कण्ठ में इन्द्र ने अपने हाथ से पारिजात की माला पहनाई।

१०४० से १०६९ ई॰ तक चालुक्यों की राज्यलक्ष्मी जयसिंह के पुत्र आहवमल्ल की वशीभूत रही। इसका दूसरा नाम त्रैलोक्यमल्ल भी लिखा है। उसने चोलों को जीता और मालवा की राजधानी धारा पर भी चढ़ाई की। धारा में उस समय, राजा भोज राज्य करता था। भोज को धारा से भागना पड़ा। दाहल के राजा कर्ण का भी अधिकार आहवमल्ल ने छीन लिया। कांची के


  1. सत्याश्रय का राज्य-काल ९९७ से १००८ ई॰ तक है।
  2. इस राजा ने १०१८ से १०४० ई॰ तक राज्य किया। इन्द्र के हाथ से माना पहनाये जाने से बिल्हण का कदाचित् यह अभिप्राय है कि जयसिंह ने युद्ध में प्राण छोड़े; अतएव, किसी अप्सरा ने, सुरलोक में, उसे अपना पति बनाया और नन्दनवन के फूलों की माला पहनाई। १००८ और १०१८ के बीच जयसिंह के बड़े भाई ने राज्य किया; परन्तु उसका नाम बिल्हण ने छोड़ दिया है।