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पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/४३

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राजा को परास्त करके उसे उसने निकाल दिया और अपनी राजधानी कल्याण को नये नये प्रासादों और मन्दिरों से शोभित किया।

आहवमल्ल यद्यपि वैभव के शिखर पर आरूढ़ था, तथापि उसे इस बात की बड़ी चिन्ता थी, कि उसके कोई पुत्र नहीं। इसलिए उसने अपनी रानी के साथ एक शिवालय में तपस्या आरम्भ की। शङ्कर उसकी आराधना से प्रसन्न हुए और उन्होंने यह वर उसे दिया कि, एक नहीं किन्तु तीन पुत्र उसके होंगे। उन्होंने कहा कि "दो पुत्र तो तुझे तेरी तपस्या के प्रभाव और सदाचरणों के बल से होँगे और एक मेरी कृपा[] से होगा"। यह सुनकर आहवमल्ल ने प्रसन्नतापूर्वक वहाँ से प्रस्थान किया और अपना राज्य कार्य करने लगा।


  1. जान पड़ता है, अपने चरितनायक विक्रमाङ्क को देवताओं की कृपा-विशेष का पात्र प्रकट करने ही के लिए बिल्हण ने इस प्रकार की आकाशवाणी की योजना की है। विक्रम ने अपने बड़े भाई सोमदेव को निकाल कर कल्याण की राजगद्दी उससे छीन ली। अत: बिल्हण यदि विक्रम को देवताओं के प्रसाद से उत्पन्न हुआ न बतलाते तो शायद विक्रम का ऐसा अनुचित व्यापार वाचकों की दृष्टि में बहुत मन्द दिखलाई देता।