पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/५३

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राजिग को दण्ड देने के लिए विक्रम ने अपनी सेना सज्जित की और शीघ्र ही कांची की ओर प्रस्थान कर दिया। परन्तु राजिग ने विक्रम के बड़े भाई सोमेश्वर के पास दूत भेजकर उसे अपना मित्र बना लिया और दोनों ने मिल कर विक्रम को परास्त करने का विचार किया। यद्यपि चोल और चालुक्यों की सर्वदा से शत्रुता चली आती थी, तथापि भाई से बदला लेने का अच्छा अवसर हाथ आया जान सोमेश्वर इस चिर-शत्रुता को भूल गया। विक्रम ने राजिग पर चढ़ाई की और थोड़े दिनों में वह अपने शत्रु की सेना के सम्मुख पहुँच गया। इधर सोमेश्वर ने कल्याण से प्रयाण किया और विक्रम के पीछे पीछे अपनी सेना दौड़ा कर उसका निकटवर्ती हुआ। जब विक्रम को अपने भाई की कृति का समाचार मिला तब उसने उसके साथ युद्ध करने से अनिच्छा प्रकट की और सोमेश्वर को उसके अनुचित अनुष्ठान से विरत होने के लिए बहुत समझाया। सोमेश्वर ने ऊपरी मन से विक्रम को लिख भेजा कि वह उसके साथ युद्ध नहीं करना चाहता; परन्तु मन में वह उसे धोखा देकर मार

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