पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/५४

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डालने का यत्न करता रहा। विक्रम को उसकी चाल विदित हो गई, परन्तु फिर भी अपने बड़े भाई के सम्मुख रण में शस्त्र उठाने से उसने आनाकानी की। अतएव शिव[१] ने स्वप्न में विक्रम को आज्ञा दी कि वह लड़े और अपने शत्रुओं को परास्त करके दक्षिण में सबसे बड़ा राजा होवे। यदि ऐसा स्वप्न उसे न होता तो वह कदापि अपने बड़े भाई से न लड़ता। अस्तु। दूसरे दिन महा घोर संग्राम हुआ, उसमें विक्रम की जीत हुई।


  1. एशियाटिक सोसायटी के जरनल के चतुर्थ भाग में लिखा है कि यह युद्ध १०७६ ईसवी में हुआ। परन्तु राजिग का नाम वहाँ नहीं लिखा; केवल सोमेश्वर और विक्रम के युद्ध का वर्णन है। बिल्हण के अनुसार विक्रम को राज्य की अभिलाषा न थी; वह उसे उसके भाग्य से आपही आप मिला; यों कहना चाहिए कि शिवजी ने बलात् उसे दिलाया। परन्तु सामान्य वाचकों के मन में इन बातों को सुन कर शंका आये बिना नहीं रह सकती। राज्य के लिए भाई भाई में अनेक युद्ध हुए हैं और अब भी अनेक झगड़े हुआ करते हैं। कोकन और आलुप इत्यादि के राजाओं से मेल करके विक्रम यदि पहले ही से अपने भाई के साथ युद्ध के लिए प्रस्तुत रहा हो तो क्या आश्चर्य है? राज्य-लक्ष्मी के लिए कौन लोलुप नहीं होता? यदि, विक्रम संसार के साधारण नियमों में अपवादरूप रहा हो तो हो सकता है।