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राजिग भाग गया और सोमेश्वर पकड़ लिया गया। युद्ध समाप्त होने पर विक्रम तुङ्गभद्रा की ओर फिर लौट आया। उसने चाहा कि वह सोमेश्वर को छोड़ दे और छोड़कर राज्य भी उसे ही दे दे; परन्तु शिव ने क्रोधपूर्वक फिर उसे आज्ञा दी कि वह तुरन्त ही राज्य का सूत्र अपने हाथ में लेवे। अतएव, विवश होकर, शिवजी की आज्ञा विक्रम को माननी पड़ी। उसने अपने को दक्षिण का राजा प्रसिद्ध किया और अपने छोटे भाई जयसिंह को वनवास देश का अधिकारी नियत किया[१]।
तदनन्तर विक्रम ने और अनेक चढ़ाइयाँ की और दिग्गजों को छोड़ कर सब कहीं सब कुछ अपने अधीन कर लिया। कवि ने यह नहीं लिखा कि किसके ऊपर ये चढ़ाइयाँ हुई। परन्तु जब कोई राजा जीतने को न रहा-सारा 'नरनाथचक्र'[२] जीत लिया गया-तब विक्रम ने चोल को निमूल करने के लिए एक बार और उस पर धावा किया। यह करके उसने अपनी राजधानी कल्याण में प्रवेश किया।