पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/५६

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कल्याण में विक्रम का आगमन वसन्त में हुआ। जब ऋतुराज अपने आगमन से मनुष्यों के चित्त को चंचल कर रहा था तभी करहाट (अर्धा-चीन कराड़) के राजा की कन्या चन्द्रलेखा अथवा चंदल देवी की अश्रुतपूर्व सुन्दरता का वर्णन विक्रम के कान तक पहुँचा। उसने सुना कि पार्वती की आज्ञा से वह राजकन्या स्वयंवर करना चाहती है। नख से लेकर शिखा पर्य्यन्त उस कन्या का वर्णन सुनकर विक्रम का चित्त उस पर लुब्ध हो गया। अतएव इस बात को जानने के लिए उसने करहाट को एक दूत, उसी क्षण, भेजा कि चन्दलेखा उसे मिल सकती है या नहीं। उस दूत के लौटने तक विक्रम को असह्य विरह-वेदनायें हुई। उसके अङ्ग-प्रत्यङ्ग दुबले हो गये, उसका मुख पीला पड़ गया, और किसी काम में उसका मन न लगने लगा। यह दशा बहुत दिन तक उसे न भोगने पड़ी। वह दूत शीघ्र ही लौट आया और समाचार भी यथेष्ट लाया। उसने कहा कि आपके सद्गुणों पर मोहित होकर चन्द्रलेखा ने आप ही को जयमाल पहनाना