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योरप की यात्रा।

पहुँचना चाहिए। गाड़ी से उतर कर हम लोग अपना निवास- स्थान ढूँढने लगे। बहुत ढूँढ़ने के पीछे हम लोग लगभग साढ़े तीन बजे अपने डरे पर पहुँचे और ठंडा भोजन किया। आज सारे दिन की यात्रा से यह ज्ञान उत्पन्न हुआ कि हम दोनों भाइयों में लिविंगस्टन या स्टैनली के समान भौगालिक-तत्त्व के आविष्कार की शक्ति नहीं है। यदि हम लोग इस संसार में अपनी अक्षय-कीर्ति चाहते हों तो किसी दूसरी विद्या की और हम लोगों को मन लगाना चाहिए।

१२ सितम्बर। हमारे साथी मित्र में एक बड़ा भारी गुण यह था कि वे मार्ग नहीं भूलते थे। अतएव हमने लन्दन देखने के लिए उन्हीं का अपना पण्डा बनाया। अब हम जहाँ जाते हैं, उनको अपने साथ अवश्य ले लेते हैं और वे जहाँ जाते हैं तो भी हम लोग उनका साथ किसी प्रकार नहीं छोड़ते; किन्तु एक आशङ्का यह है कि इस प्रकार की वियोग-शून्य मित्रता इस पृथिवी पर सदा आदर नहीं पाती। इस संसार मेँ, फूल में काँटे, चन्द्रमा में कलङ्क और मित्रता में वियोग है।

आज हम लोग अपने साथी को साथ लेकर नगर देखने के लिए निकले। नेशनल गैलरी में चित्र देखने के लिए गये और डरते डरते चित्रों का देखा। किसी भी चित्र को पूरे तौर से पसन्द करने मेँ खटका यह था कि किसी चित्रकला के अच्छे विज्ञ पुरुष को यह चित्र शायद नापसन्द हो; और जो चित्र बिलकुल नापसन्द थे, उनके बारे में भी मैं कुछ कह नहीं सकता। शायद योरप के चित्रकलारसिकों को वे ही रुचते हों।