पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६६
विचित्र प्रबन्ध।

और गम्भीर मातृभाव झलकता है वह भी इसमें नहीं। फिर इसे पूछे तो कौन पूछे?

इधर अमुक मिस और अमुक मिस को देखो। दोनों कुमारियाँ पुरुषों का कैसे खेल खिला रही हैं। उन्हें और कोई काम नहीं है, किसी बात की चिन्ता नहीं है और काई सुख भी नहीं है। उनके न मन है और न आत्मा। है केवल आँखों में चञ्चलता और मुँह में हँसी, बातचीत और उत्तर-प्रत्युत्तर।

२६ अक्तूबर! जहाज़ के एक दिन का वर्णन करना उचित जान पड़ता है।

प्रात:काल डेक धोया गया है। वह इस समय भी गोला है। दा कृतारों में डेक की कुरसियाँ एक पर एक करके रक्खी गई हैं। नङ्गे पैर रात के कपड़े पहने पुरुष-गण, कोई अपने साथियों के साथ और काई अकेले ही, बीच के मार्ग में घूम रहे हैं। क्रमश: जव आठ बजे और धीरे धीर स्त्रियों का दल ऊपर जाने लगा, तब इन विलक्षण वंश-धारी पुरुषों का दल वहाँ से हटा।

स्नान करने के घर के सामने बड़ी भीड़ है। स्नान करने के घर केवल तीन ही हैं। हम सब लोग द्वार ही पर खड़े हैं और तौलिया तथा स्पञ्ज लिय किवाड़ खुलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। स्नानगृह में दस मिनट से अधिक रहने का नियम किसी के लिए भी नहीं है।

स्नान के पीछे वस्त्र आदि पहन कर मैं डेक पर गया। वहाँ प्रात:कालीन वायु-सेवन के लिए स्त्री-पुरुषों की भीड़ लगी है। स्त्रियों से टोपी उठा कर और परिचित मित्रों से सिर हिला हिला