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पञ्चभूत।

मैंने कहा―डायरी लिखने मेँ एक बहुत बड़ा दोष है। इमसे―

दीप्ति ने घबरा कर कहा―दोष है, रहने दो, तुम लिखो।

नदी ने बड़े ही मधुर स्वर में कहा―क्या दोष है? भला मैं भी तो सुन लूँ।

मैंने कहा―डायरी लिखना एक प्रकार का कल्पना-मय जीवन है। पर जब वह लिख कर तैयार की जाती है तब उसका प्रभाव हमारे इस सत्य जीवन पर भी अवश्य ही पड़ता है। एक मनुष्य विचार-पूर्वक अनेक कार्यों द्वारा इस संसार में एक मार्ग तैयार कर रहा है, जिसकी छाया संसार पर पड़ रही है। साथ ही वह डायरी भी लिखता जाय, तो संसार में एक और दूसरा जीवन भी उत्पन्न हो जायगा।

क्षिति ने कहा―डायरी को तुम दूसरा जीवन क्यों कहते हो, यह बात मैं अभी तक नहीं समझ सकी।

मैंन कहा―मरे कहने का यही प्रयोजन है कि तुम्हारा जीवन एक ओर मार्ग बनाता जा रहा है। यदि तुम उसीके साथ क़लम से एक दूसरी रेखा बना दोगी तो उससे ऐसी अवस्था उत्पन्न होने की सम्भावना है कि जब इस बात का निर्णय करना कठिन हो जायगा कि क्या यह रेखा तुम्हारे जीवन के साथ उत्पन्न हुई है, और यह तुम्हारे जीवन को बीच से होकर निकल गई है, अथवा तुम्हारा जीवन ही इस रेखा को बीच से काटता हुआ निकल गया है। जीवन स्वभाव से ही रहस्य-मय है। जीवन में कई बार आत्मा के विरुद्ध, इच्छा के विरुद्ध तथा और भी परस्पर विरुद्ध अनेक कार्य करने पड़ते हैं। इस तरह जीवन बहुत प्रकार की बातों के