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पञ्चभूत।

श्रीमान् वायु ने विचलित होकर कहा―ऐसी बात भी कही जाती है! इस संसार में अपराध स्वीकार करना बड़ी भूल की बात है। लोग समझते हैं कि अपना अपराध स्वयं स्वीकार कर लेने से विचारक की दृष्टि में अपराध की मात्रा कम हो जाती है। पर बात ऐसी नहीं है। दूसरे के दोषों का विचार करना तथा उसका तिरस्कार करना, इस संसार में सब सुखों से बढ़ कर सुख समझा जाता है। तुम अपने अपराध को―जितना चाहो,―बढ़ा कर कहो, पर कठोर-हृदय विचारक उन सब अपराधों को और भी मज़बूती से पकड़ कर सुख पाता है। मैं सोच रहा था कि मेरे लिए कौन मार्ग उत्तम है, मैं किस मार्ग का अनुसरण करूँ। इस समय मैंने निश्चय कर लिया है कि मैँ डायरी लिखा करूँगा।

मैंने कहा―डायरी लिखने के लिए मैं भी तैयार हूँ, पर उसमें मैं अपनी बात न लिखूँगा। ऐसी बात लिखूँगा जो हम सब लोगों की होगी। यही प्रतिदिन हम लोग जिन बातों की आलोचना करते हैं―

यह सुनकर नदी कुछ डर सी गई। वायु ने हाथ जोड़ कर और दुहाई देकर कहा―यदि तुम सब बातें लिखोगे ता मैं घर से सब बातें स्मरण करके आया करूँगा और प्रति दिन कह जाऊँगा। यदि किसी दिन बात कहते कहते कोई बात भूल जायगी तो फिर घर जाकर वह बात स्मरण कर आया करूँगा। इससे फल यह होगा कि बातें तो बहुत थोड़ी होंगी परन्तु परिश्रम बहुत अधिक बढ़ जायगा। यदि तुम बिल्कुल सच्ची ही बातें लिखोगे तो कहो मैं तुम्हारे साथ से नाम कटा कर चला जाऊँ।

मैंने कहा―अरे नहीं, मैं सत्य के अनुरोध की रक्षा करूँगा―