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विचित्र प्रबन्ध।

मित्र के अनुरोध का पालन करूँगा। तुम लोग किसी प्रकार की चिन्ता मत करो। मैं तुम लोगों के मुख से बनाकर बातें कहलवाऊँगा।

क्षिति न अपनी आँखें फाड़कर कहा―यह तो और भी भया- नक बात है। मैं तो यह ठीक ठीक समझती हूँ कि तुम लोगों के हाथ जिस दिन क़लम जायगी उस दिन तुम सब कुयुक्ति-पूर्ण बातें मेरे मुँह से कहलाओगे और उनके अकाट्य उत्तर अपने मुँह से दोगे।

मैंने कहा―जिमके सामने मैं ज़बानी तर्क में हार जाता हूँ, उससे अवश्य ही उसका बदला लेख के द्वारा लूँगा। यह बात मैं पहले ही से स्पष्ट कहे देता हूँ कि तुमने जितना अत्याचार किया है और तुमसे जितनी हार मुझे सहनी पड़ी है उसका बदला अब चुकाऊँगा।

सब सहन करनेवाली क्षिति ने कहा―अच्छा, ऐसा ही सही।

व्योम ने कोई बात तो नहीं कही, पर वह कुछ मुसकुराये अवश्य। उस मुसकुराने का गम्भीर अर्थ आज तक मैं नहीं समझ सका।

सौन्दर्य का सम्बन्ध

वर्षा ऋतु में नदी चारों ओर फैल गई है, और उसका जल खेतों में भी आ गया है। आधे डूबे हुए धानों पर से हम लोगों की नाव सर सर करती चली जा रही है।

समीप ही ऊँची भूमि पर केला, कटहल, आम, बाँस और पीपल के बड़े बड़े पेड़ हैँ। इन्हीं के बीच में एक चहार-दीवारी दीख पड़ती है। उसमें एक मकान है और उसके पास ही टीन से छाये हुए छोटे छोटे घर हैं।