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पञ्चभूत।

व्योम ने कहा―यह तुमने जो आत्मा की सृजन-चेष्टा की बात कही उसके सम्बन्ध में और भी बहुत सी बातें हैं। जिस प्रकार मकरी बीच में रहती है और अपने चारों ओर जाल फैला देती है, उसी प्रकार हम लोगों का हृदयवासी आत्मा भी सदा अपने चारों ओर के पदार्थों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयन्न किया करता है। वह सदा ही से भिन्न को समान, दूर को समीप और दूसरे को अपना बनाता रहता है। वह बैठे बैठे आत्मीयता और परता के बीच में सम्बन्ध स्थापित करता रहता है, इन दोनों के बीच में एक मार्ग तैयार करता है। जिसको हम लोग सौन्दर्य कहते हैं वह मन का अपना नया आविष्कार है। जड़ और आत्मा के बीच के सम्बन्ध का नाम सुन्दरता है। वह है बहुत ही छोटे आकार की वस्तु, पर हम लोग उसी से भोजन पाते हैं, उसी मेँ बास करते हैं और कभी कभी उससे आघात भी पाते हैँ। यदि उसको हम लोग अपनी वन्तु न समझते तो वह भी अन्यान्य वस्तुओं के समान एक बाहरी पदार्थ ही रहता। पर ऐसा नहीं है, आत्मा का काम ही है कि वह आत्मीयता स्थापन करे। वह जड़ और अपने बीच में सुन्दरता नाम का एक सम्बन्ध स्थापित कर देता है। आत्मा ने जड़ को सुन्दर समझा और वहाँ अपने रहने के लिए स्थान भी नियत कर लिया। उसी समय से जड़ ने भी आत्मा का आश्रय ग्रहण किया। वह दिन बड़े आनन्द का था। इस समय भी यह सम्बन्ध स्थापित करने का काम हो रहा है। कवि का प्रधान गौरव भी यही है। यही सृष्टिकर्त्ता का प्रशंसनीय कार्य है। पृथिवी में चारों और हमारा पुराना सम्बन्ध दृढ़ किया जा रहा है और नये नये

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