पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९४
विचित्र प्रबन्ध।

सम्बन्ध स्थापित किये जा रहे हैं। प्रतिदिन पर-पृथिवी अपने और जड़-पृथिवी आत्मा के रहने योग्य बनाई जा रही है। यह कहने की तो कोई आवश्यकता नहीं देख पड़ती कि सर्व-साधारण जिसको जड़ कहते और समझते हैं यहाँ भी उसी जड़ से मतलब है। जड़ की जड़ता-सम्बन्ध में यदि मैं अपना मतामत प्रकाशित करने बैठूँ तो इस सभा में मेरे सिवा और कोई चेतन नहीं मिल सकेगा।

व्योम की बातों पर विशेष ध्यान देकर वायु ने कहा―नदी ने केवल गाय का एक ही दृष्टान्त दिया है। पर हमारे देश में इस विषय के दृष्टान्तों की कमी नहीं है। एक दिन मैंने देखा कि एक मनुष्य धूप से व्याकुल होकर नदी के किनारे आया और अपने सिर पर से ख़ाली किरोसिन के तेल का कनस्टर रख कर 'मैयारे' कहता हुआ जल में कूद पड़ा। मेरे मन पर इसका प्रभाव बहुत पड़ा। जो स्निग्ध सुन्दर गम्भीर जल-राशि मधुर कल-नाद करती हुई और दोनों तीर की भूमि का प्लावित करती हुई बहती है उसकी शीतल गोद में अपने तप्त शरीर को समर्पित करना और उसे मैया कहना इससे बढ़ कर हृदय का महान् और मधुर भाव दूसरा क्या हो सकता है? फल-शस्य-पूर्ण इस महान् पृथ्वी से लेकर हम लोगों के पिता-पितामह आदि के रहने के अपने घर तक जब सब सजीव आत्मीय के समान देख पड़ता है तब हम लोगों का जीवन सुन्दर और सुखमय प्रतीत होने लगता है। उसी समय संसार के साथ दृढ़ सम्बन्ध स्थापित होता है। जड़ से पशु और पशु से मनुष्य तक सभी एक दृढ़ और अविच्छिन्न सम्बन्ध से जकड़े हुए हैं। यह बात हम लोगों के लिए कोई नई नहीं है। क्योंकि विज्ञान के द्वारा यह