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विचित्र प्रबन्ध।

व्योम ने कहा―योरपवाले जैसी कृतज्ञता प्रकाशित करते हैं वैसी कृतज्ञता तो हम लोग देवता के सामने भी नहीं प्रकट करते। योरपवाले कहते हैं―"थैंक गाड", इसका स्पष्ट अर्थ यही है कि ईश्वर ने सावधानी से जो हमारा उपकार किया है उस उपकार को स्वीकार न करना असभ्य-जनोचित कार्य होगा इस कारण ईश्वर के प्रति वे कृतज्ञता प्रकट करते हैं। पर हम लोग वैसा नहीं करते। हम लोग देवता के सामने कृतज्ञता नहीं प्रकट करते। इसका कारण यह है कि केवल कृतज्ञता प्रकट कर देना ही हम लोग देवता के उपकार का यथेष्ट बदला नहीं समझते। वैसा करना देवता की धोखा देना है। वैसा करनेवाले देवता से कहते हैं कि 'तुमने अपना काम कर दिया, और हम भी अपना काम किसी प्रकार टाल देत हैं।" पर हम लोगों की समझ से वैसा करना उचित नहीं है। गाढ़े प्रेम में एक प्रकार की अकृतज्ञता रहती है। प्रेम के प्रतिफलों का अन्त नहीं है। वह प्रेम की अकृतज्ञता स्वतन्त्रता की कृतज्ञता की अपेक्षा कहीं बड़ी और मधुर है। भक्त रामप्रसाद ने एक गान गाया है―

तोमाय मा मा बोले आर डाकिबो ना,
आमाय दियेको, दितेछो कत यन्त्रणा।

(मैं अब तुम को माता कहकर नहीं पुकारूँगा। क्योंकि तुमने मुझे बहुत कष्ट दिये हैं और देती भी हो।)

इस उदार अकृतज्ञता का अनुवाद क्या योरप की किसी भाषा में हो सकता है?

क्षिति ने व्यङ्ग से कहा―योरप-वासियों के प्रति हम लोगों