निकाल कर बाहर के कार्यों मेँ लगा देने से क्या संसार के काम- काज की हानि होगी! क्या पुरुषों में वह शक्ति है कि वे उतने बड़े कामों को शीघ्रतापूर्वक कर सकें? पुरुषों में फुर्ती नहीं होती। उन्हें कोई भी काम करने में समय लगता है। क्योंकि पुरुष और चिन्ता के बीच में बहुत अन्तर है। वह अन्तर भी चिन्ता से परिपूर्ण है। स्त्री यदि संसार के बाहरी कामों मेँ सम्मिलित हो तो निश्चित ही समस्त संसार जलकर राख हो जाय। इसी कारण इस प्रलय-कारिणी कार्य-शक्ति को संमार ने बाँध रक्खा है। इसी अग्नि की सहायता से सन्ध्या के समय घर में दीपक का प्रकाश होता है, शीत से पीड़ित मनुष्यों का जाड़ा छूटता और भूखों को भाजन मिलता है। यदि हम लोगों के साहित्य में इस सुन्दर अग्नि का प्रकाश फैला है तो इसके लिए इतने तर्क-वितर्क की क्या आवश्यकता है?
मैंने कहा―हमारे देश में स्त्रियों को प्रधानता दी जाने का प्रधान कारण यह है कि इस देश में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ श्रेष्ट हैं।
नदी का मुँह कुछ लाल हो आया। वह हसँने लगी। दीप्ति ने कहा―यह तो तुम बड़ाई करते हो।
मैंने समझा कि दीप्ति की यह इच्छा है कि वह प्रतिवाद के द्वारा अपनी जाति का गुण-गान करावे और उसे सुनकर स्वयं प्रसन्न हो। मैंने दीप्ति से वह बात भी कहीं और यह भी कहा कि स्त्रियाँ अपनी प्रशंसा सुनना बहुत अधिक चाहती हैं। दीप्ति सिर हिला कर कहने लगी―नहीं, कभी नहीं।
नदी ने धोरे से कहा―यह बात तो सच है। अप्रिय बातें