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विचित्र प्रबन्ध।

सुनना नहीं चाहतीं। उससे वे अपने जीवन को सार्थक समझती हैं। उनके कार्यों में त्रुटि और असम्पूर्णता दिखाने से उन्हें बड़ा कष्ट होता है। इसी कारण स्त्रियों के लिए लोकनिन्दा बहुत ही भयानक है।

क्षिति ने कहा―कवित्व से सनी हुई तुम्हारी बातें बड़ी मज़ेदार हैं, सुनने में अच्छी लगती हैं। पर असल बात यह है कि स्त्रियों का कार्य-क्षेत्र बहुत ही सङ्कीर्ण हैं। बड़े देश में, बड़े समय में उनके लिए स्थान नहीं है। समयानुसार पति, पुत्र, आत्मीय तथा परोसी आदि को सन्तुष्ट और प्रसन्न रखना ही उनके कर्त्तव्य का उद्देश्य है। जिनके जीवन का कार्य-क्षेत्र विशाल और सदा के लिए विस्तीर्ण है; जिनके कार्यों का फलाफल शीघ्र दृष्टिगोचर नहीं होता; पास के मनुष्य तथा सामयिक निन्दा-स्तुति की जो कुछ परवा नहीं करते, उनकी आशा और कल्पना उन्हें अनादर, उपेक्षा और निन्दा को सहने का बल प्रदान करती है। लोक-निन्दा, लोक-स्तुति, सौभाग्यगर्व, मान-अभिमान से स्त्रियाँ जो विशेष विचलित हो जाती हैं इसका प्रधान कारण यह है कि उनको इस जीवन में नक़द कारबार करना पड़ता है। उनके कार्यों का फलाफल तत्काल ही प्राप्त होता है। तत्काल जो फल मिल जाय उसी पर उनका अधि- कार है। इसी कारण वे बड़ी कड़ाई से अपना प्राप्य वसूल करना चाहती हैं। एक छदाम भी छोड़ना नहीं चाहतीं।

यह सुनकर दीप्ति अप्रसन्न हुई। वह योरप और अमेरिका की प्रसिद्ध प्रसिद्ध देशहितैषिणी स्त्रियों के उदाहरण ढूँढ़ने लगी। नदी ने कहा―विशालता और महत्ता सब समय एक वस्तु नहीं