पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२२४

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पञ्चभूत । २१३ उनका संचालन करती है ! यहाँ के पुरुष किसी बड़े भारी कार्य के द्वारा विशाल कार्य-क्षेत्र में अपने जीवन का विकसित करने का प्रयत्न नहीं करते। इसी कारण उन्हें स्वाधीनता का अत्याचार, गुलामी की हीनता और दुर्बलता का अपमान सिर नीचा करके सहना पड़ता है। उनका पुरुषों योग्य कोई भी काम नहीं करना पड़ता: हाँ कापुरुषों के लायक अपमान का भागी अवश्य होना पड़ता है। स्त्रियों को बाहर जाकर अपने लिए कोई काम नहीं खोजना पड़ता । जैसे वृक्षों की शाखाओं में आप ही फल-फूल आदि लग जात हैं, वैसे ही यहाँ की स्त्रियों को अपने आप काम मिल जाया करते हैं। जब से स्त्रियाँ प्रेम करना शुरू करती हैं तभी से उनका कर्तव्य भी शुरू हो जाता है। उसी समय से उनका चित्त विक- सित हो जाता है। उनकी चिन्ता, विचार, युक्ति, कार्य आदि के प्रारम्भ होने का वही ममय है। वहीं से उनका जीवन प्रारम्भ होता है। बाहर भलं ही राष्ट्र विप्लव हो जाय, पर उनके कार्यों में बाधा नहीं आ सकती। उनका गौरव ज्यों का त्यों बना रहता है। जातीय अधीनता में उनके तेज की रक्षा हो जाती है। नदी की ओर मुँह करकं मैंने कहा-आज हम लोगों को एक नई शिक्षा और विदेशी इतिहास से पौरुष का नया आदर्श मिला है । इस कारण अब हम लोग बाहर के विशाल कर्म-क्षेत्र की ओर जाने का प्रयत्न कर रहे हैं । पर क्या भीगी लकड़ी जलती है, और क्या मुर्चा लगे पहिये चलते हैं ? भीगी लकड़ी जितनी जलती है धुआँ उससे अधिक होता है-वे पहिये जितना चलते हैं उससे अधिक शब्द होता है । हम लोग बहुत दिनों से चुपचाप बैठे बैठे निकम्मे