पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२३४

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पञ्चभूत । इसी प्रकार बहुत दिनों तक की स्थिरता के द्वारा जब युक्ति, तर्क और ज्ञान क्रमशः संस्कार और विश्वाम के रूप में परिणत हो जाते हैं उसी समय उनकी सुन्दरता विकसित होती है । उस समय वह सुन्दरता स्थिर हो जाती है, और मनुष्य के हृदय में जो बीज बहुत दिनों से वर्तमान रहते हैं वे प्रानन्द प्रकाश और के अश्रुजल द्वारा अंकुरित होते हैं और उसे छा लेते हैं। इस समय योरप में जो एक नई सभ्यता का युग उत्पन्न हुआ है उस युग में लगातार नये नयं ज्ञान-विज्ञान और मतामत का ढेर लगता जा रहा है। नये नये यन्त्रों और सामग्रियों के आविष्कार से इस समय वहाँ स्थानाभाव सा देख पड़ता है। मदा परिवर्तन और चञ्चलता के कारण वहाँ कोई बात पुरानी नहीं होने पाती। पर मैं देखता हूँ कि इस सारी तैयारी के बीच में मनुष्य का हृदय सुखी नहीं है, उसे शान्ति नहीं है, वह केवल राया ही करता है। इसका कारण यह है कि मनुष्यां का हृदय जब तक इस विशाल सभ्यता के ढेर में एक सुन्दर एकता स्थापित नहीं कर सकंगा, तव तक वह कभी आराम से गृहस्थी जमाकर प्रतिष्टित नहीं हो सकता। तब तक वह केवल अस्थिर और अशान्त होकर भटकता किरेगा। इस युग में और सब जमा होगया है, केवल अभी तक उसो स्थायी सौन्दर्य और नवीन सभ्यता की राजलक्ष्मी के दर्शन नहीं हुए। ज्ञान, विश्वास और कार्य- i-आपस में धक्कमधक्का करके-एक दूसर को सता रहे हैं और वह भी सम्मिलित होने के लिए नहीं, किन्तु एक दूसरे को दबाने के लिए । विजय प्राप्त करने के लिए ही इनमें परस्पर भिड़न्त होरही है।