पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२६३

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२५२ विचित्र प्रबन्ध। के जीवन की रक्षा न हो सकती, परन्तु प्रतिभा का हम लोगों के जीवन में इतना उपयोग नहीं है। वह कभी कभी काम में आती है। उसके द्वारा कभी हानि भी हो जाया करती है, तथापि बुद्धि की अपेक्षा प्रतिभा को हम लोग श्रेष्ठ समझते हैं । इसका मुख्य कारण यह है कि बुद्धि का सम्बन्ध मन से है, बुद्धि का गिन गिन कर पैर रखना पड़ता है और प्रतिभा मन के नियमों को नहीं मानती,- अकस्मात् पाती है। वह न किसी के बुलाने से आती और न किसी के निषेध को मानती है। प्रकृति के मन नहीं है अतएव उसके प्रति हमारी इतनी श्रद्धा है। प्रकृति की एक तह में दूसरी तह नहीं है। पृथिवा से लेकर प्रकाशमान आकाश तक फैले हुए इन घरेलू आचार-व्यवहारों में कोई भी विदेशी नहीं घुस पड़ा है, जो दुष्टता करता हो । प्रकृति एकाकी, अखण्ड, निश्चिन्त और निरुद्विग्न है । उसके नाले ललाट पर बुद्धि की रेखा नहीं देख पड़ती, किन्नु प्रतिभा की ज्योति से ही उसका मस्तक उद्भासित हो रहा है। जिस प्रकार सर्वाङ्ग-सुन्दर फूल की कली अनायाम ही खिल जाता है उसी प्रकार महसा बड़ी भारी एक आँधी कहीं से आती है और सब सुख-स्वप्नों को नष्ट-भ्रष्ट करकं चली जाती है। इच्छा भी बहुत है और प्रयत्न भी कम नहीं है, परन्तु फल कुछ भी नहीं होता । इच्छा कभी प्रिय मालूम होती है और कभी उमसे दुःख भी होता है। कभी वह प्यारी अप्सरा के समान गाने लगती और नम गान से हम लोगों को प्रसन्न करती है, और कभी राक्षसी के समान गरजने लगती है जिससे हम लोग भयभीत हो जाते हैं।