विचित्र प्रबन्ध । ही नहीं, ऐसी बड़ी प्रार्थना देवताओं से नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उनकं न रहने से संसार की जन-संख्या बहुत घट जायगी। पर- सिका द्वारा ही संसार के बहुत से काम होते हैं-मानव-समाज के लिए उनकी बड़ी आवश्यकता है। यदि अरसिक न होतं ता सभा बन्द होजाती, कमिटी क्यों की जाती, समाचारपत्रों में लिखा क्या जाता, और समालोचना ही किसकी की जाती ! इसी कारण उनका मैं बड़ा प्रादर करता हूँ। कोल्हू में राई या तिल डालने से ही उसमें से तेल की धारा निकलती है। यदि कोई उसमें फूल डाले और शहद निकलने की आशा करे तो उसकी प्राशा सफल नहीं हो सकती। अतएव मेरी प्रार्थना है-हे चतुरानन, कोल्हू का कभी नाश न करना, वह संसार में सदा सुरक्षित रहे, परन्तु उसमें न ता फूल डालना और न गुग्गियों के हृदय हो । श्रीमती नदी का दयाई हृदय सर्वदा निर्बलों का पक्ष करता है। वे मेरी दुर्दशा देख कर दुःखी हुई और बोली---- क्या गद्य और पद्य में इतना भेद है ? मैंने कहा-पद्य अन्तःपुर है और गद्य बाहर की बैठक है। दोनों के लिए अलग अलग स्थान नियत हैं। परन्तु अबला नारी वाहर घूमने के लिए निकलेगी तो उसे विपत्ति में फंसना ही पड़ेगा, यह कोई निश्चित बात नहीं है। हाँ, यदि उसे किसी उद्धत स्वभाव के मनुष्य द्वारा अपमानित होना पड़े तो वह रोने के अतिरिक्त और क्या कर सकती है। इसी कारण वह मदा अन्तःपुर हो में रहती है, क्योंकि वही उसके लिए सुरक्षित स्थान है। कविता के लिए पद्य भी अन्तःपुर के समान है; छन्दों से घिरी रहने के कारण
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