पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२७९

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विचित्र प्रबन्ध । दीप्ति ने अपना मुँह फेर लिया और कहने लगी-अहो भाग्य है कि हम लोगों का सब भाग प्रौढ़ नहीं हो गया। मनुष्यों में वर्तमान बाल्यभाव को मैं हृदय से धन्यवाद देती हूँ। उसी के प्रसाद से संसार में मधुरता देखी जाती है। वायु ने कहा—जो मनुष्य एकदम प्रौढ़ हो गया है वह इस संसार का बड़ा लड़का कहा जा सकता है। किसी प्रकार का खेल- कूद, किसी प्रकार का लड़कपन उसे पसन्द नहीं होता। हम लोगों को इस समय की हिन्दू-जाति संसार की मत्र जातियों से बड़ो समझो जाती है, अतएव यह अपनी बहुत अधिक गम्भीरता प्रका- शित करती है, परन्तु यह इस समय भी बहुत सी बातों में छोटी ही है । जेठे लड़के और पुरानी जाति की उन्नति होना कटिन है क्योंकि उनका मन विनयी नहीं होता। यह हमारी गुप्त बात है। इसका प्रकट किया जाना अच्छा नहीं, क्योंकि लोगों की रुचि इन समय बिगड़ी हुई है। मैंने कहा-जिम ममय सड़क बनाने के लिए इसन चलाया जाता है उस समय पटरी पर लिख दिया जाता है कि "इञ्जन चलता है, सावधान 17 मैं भी निति को सावधान करता हूँ, क्योंकि अब मैं भी इजन चलाऊँगा। वे रेलगाड़ी से बहुत उरती हैं परन्तु उसके द्वारा हम लोगों की यात्रा में बड़ा सुभीता होता है। गद्य-पद्य के विषय में भी अब मैं अपना अभिप्राय प्रकट करता हूँ। अब रसोई में हमारा मामगान शुरू होता है। जिसकी इच्छा हो, सुने । गति में परिमित होने का नियम है अर्थान गति एक परि-