पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२८३

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विचित्र प्रबन्ध । इसी भाव को कई भाषाओं में अनेक प्रकार से कवियों ने प्रकाशित किया है। परन्तु इसको समझे तो कान समझे ! इसे समझनेवालों की संख्या कितनी है? ऐसे भाव को प्रकाशित करना कवियों की प्रतिमा का एक धुंधला विकाश है। भाषा से हृदय का प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। भाषा मस्तिष्क क द्वार से हृदय में प्रवेश करती है । भाषा केवल दृती है। इस दृती को महाराज की सभा में प्रवेश करने का अधिकार नहीं। वह महाराज के दीवानखाने तक जा सकती है और वहाँ जाकर अपन पाने का संवाद महाराज के पास भेज देती है। भाषा का अर्थ समझना पड़ता है; उसका अन्वय अर्थ आदि करने में समय लगता है। पर संगीत के सम्बन्ध में यह बात नहीं है । वह सीधा हृदय से जाकर मिल जाता है। इसी कारण कविगण भाषा के साथ संगीत का याग कर देते । वह अपने मन्त्र बल से हृदय का द्वार खोल देता है। छन्द और ध्वनि के प्रवाह में हृदय को अवश-भाव से प्रवाहित होना पड़ता है। उस समय भाषा का काम बहुत सहज हो जाता है; उस- का अर्थ समझने के लिए कुछ परिश्रम नहीं करना पड़ता। दूर से जब वंशी की धुन सुन पड़ती है, आँखों के सामने जब विकसित पुष्प-वन उपस्थित होता है, उस समय प्रेम का अर्थ समझने के लिए कोई दिक्कत उठानी नहीं पड़ती। सौन्दर्य पल भर में ही भाव के साथ हृदय का परिचय करा देता है। यह शक्ति सौन्दर्य ही में है, दूसरे में नहीं। संगीत के दो भाग हैं । सुर और ताल, छन्द और ध्वनि ।