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विचित्र प्रबन्ध।

व्यवहार चलता है कि नहीं। सुख-दुःख, विपत्ति-सम्पत्ति आदि के द्वारा शिक्षा प्राप्त करने के लिए जीव इस संसार की पाठशाला में भेजा गया है। यही सिद्धान्त मूलधन है। इसके द्वारा जीवन-यात्रा बहुत उत्तम प्रकार से निभती है। अतएव इस विषय में मेरा सिद्धान्त है कि यह मूल-धन―यह सिक्का―खाटा नहीं है। जब समय आवेगा तब मैं आप लोगों को यह भी बतला दूँगा कि जो सिक्का मैंने ख़रीद रक्खा है, जिस प्रामिसरी नोट को लेकर मैं जीवन―यात्रा के व्यवसाय में प्रवृत्त हुआ हूँ, वह सिक्का―वह प्रामिसरी नोट―विश्वविधाता के बैंक में भी लिया जाता है।

क्षिति ने बड़े कष्ट से कहा―भाई, आप लोगों के मुँह से प्रेम की बातें भी बड़ी कठिन मालूम होती हैं। अब आप लोगों ने व्यापार-तत्त्व पर भी विचार करना शुरु कर दिया है। मुझे बड़ी थकावट मालूम होती है, अतएव यहाँ से जाना चाहती हूँ। अगर आप लोग कृपापूर्वक कुछ समय दें तो मैं भी अपनी सम्मति प्रकट कर दूँ।

कुरसी पर ज़ोर देकर व्योम ने अपने पैर खिड़की की ओर ऊपर को उठा दिये। क्षिति ने कहा―मेरी समझ से इस कविता में एवोल्यूशन थ्योरी अर्थात् विकास-वाद का कुछ कुछ आभास पाया जाता है। सन्जीवनी विद्या का अर्थ है जीते रहने की विद्या। संसार में यह बात साफ़ साफ़ देख पड़ती है कि एक मनुष्य हज़ार ही वर्ष से नहीं, लाखों हज़ारों वर्षों से इस विद्या का अभ्यास कर रहा है। परन्तु जिसके अवलम्बन से वह इस विद्या का अभ्यास करता है उस प्राणिवंश से इसका क्षणिक प्रेम है; ज्योंही एक परिच्छेद समाप्त हुआ त्योंही वह निठुर प्रेमी―वह चञ्चल अतिथि―उसको