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विचित्र प्रबन्ध।

कारण सूर्य बीच बीच में मेघों की ओट में छिप जाया करते हैं। यदि वे सदा मेघ-मुक्त रहते तो उनकी इतनी प्रतिष्टा न होती। मरी समझ से संसार के बड़े बड़े प्रसिद्ध मनुष्यों को इस प्रकार के तिरस्कार का पात्र बीच बीच में बनना चाहिए―बीच बीच में ग्रीक-मूर्तियों की निन्दा भी होनी चाहिए। कभी कभी सर्व- साधारण में यह चर्चा भी फैलनी चाहिए कि कालिदान की अपेक्षा चाणक्य महान कवि थे। नहीं तो सदा एक ही बात सुनते सुनते चित्त ऊब जाता है। जो हो, यह एक बाहरी बात है। मेरा कहना है कि कभी भाव का अभाव और बर्बरता सरलता के नाम से परिचित हो जाती है; कभी कभी भाव प्रकाश करने की क्षमता का न होना भावाधिक्य के नाम से पुकारा जाता है,― इस बात का भी ध्यान में रखना चाहिए।

मैंने कहा―कला-विद्या में सरलता असीम मानसिक उन्नति की सहेली है। बर्बरता और सरलता दोनों एक पदार्थ नहीं। बर्बरता में बाहरी दिखावा बहुत अधिक होता है, सभ्यता में वह दिखावा नहीं रहता, सभ्यता में बाहरी सजावट नहीं होती। अधिक अलङ्कार देखने में अच्छे लगते हैं परन्तु उनसे मन को कष्ट होता है। हम लोगों के देशी भाषा के समाचार- पत्रों में और उच्च श्रेणी के साहित्य में सरलता और सावधानी का अभाव सा देख पड़ता है। सभी बढ़ाकर, ओजस्विता और भाव-भङ्गो के साथ, बोलना पसन्द करते हैं। बिना आडम्बर के सच्ची सच्ची बात, स्पष्ट भाषा में, प्रकाशित करने की ओर लोगों की रुचि ही नहीं है। क्योकि सत्य जब प्राञ्जल वेश में आता है तब उसकी गम्भीरता और