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विचित्र प्रबन्ध।

साफ़ करने के लिए झाडू देने लगा। झाडू देकर वह चाहता था कि यहाँ धूल न रह जाय। परन्तु झाड़ू देने से उसकी आशा पूर्ण नहीं हुई। तब उसने कुदार से वहाँ की मिट्टी खोदनी प्रारम्भ की। फिर भी वह निराश ही हुआ, वह वहाँ की धूल को नहीं हटा सका। भाई वायु, यदि तुम भी सब बाहरी आश्चर्यों को हटा कर गम्भीरता-पूर्वक आश्चर्य करना चाहते हो तो कहो हम लोग चले जायँ। “कालो ह्ययं निरवधिः” काल की अवधि नहीं है, पर वह अवधि-हीन काल हम लोगों के अधीन नहीं है।

वायु ने हँस कर कहा―हमारी अपेक्षा तुम्हारे लिए ही विशेष चिन्ता की बात है। यदि तुम भी विशेष विचार करती तो सृष्टि की बातों को आश्चर्य की दृष्टि से देखतीं किन्तु जो और अधिक विचार न करतीं तो तुम उस अपने पागल से हमारी कल्पना की तुलना न करती।

क्षिति ने कहा―क्षमा करना भाई, तुम हमारे बहुत दिनों के मित्र हो। इसी कारण हमारे हृदय में वह भावना उत्पन्न हुई थी। जो हो, असल बात यह है कि कौतुक में हम लोग हँसते क्यों हैं, यह बड़े आश्चर्य की बात है। और, इसी के साथ का एक दूसरा प्रश्न यह है कि चाहे कोई भी कारण हो परन्तु हम लोग हँसते क्यों है? ज्योंही कोई अच्छी चीज़ हम देखते हैं त्योंही हृदय से एक विलक्षण शब्द उत्पन्न होता है जिससे हमारे मुखमण्डल की मांस-पेशियाँ विकृत होकर सिकुड़ जाती हैं और दाँत बाहर निकल आते है। मनुष्य के समान इतने बड़े एक सभ्य प्राणी के लिए यह बात अनुचित, असङ्गस और अपमानकारक है, इसमें सन्देह नहीं।