पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३३० विचित्र प्रबन्ध । उठाने के लिए तथा मृत्यु के मुंह में कूद पड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं वे ही जानते हैं कि वैराग्य का अर्थ क्या है। चैराग्य का अर्थ जानने का अधिकार भी उन्हींका है। हम लोग कर्महोन, श्री-हीन, निश्चेष्ट और निर्जीव हो गये हैं। वैराग्य शब्द का अर्थ भला हम क्या समझ सका। हमारा वैराग्य अधः पतित जाति की मूर्छा है, जड़ता है, इसके लिए हमको अहङ्कार न करना चाहिए। तिति ने कहा- हम लोग अपनी इस मून्छावस्था को प्राध्या- त्मिकता पाने की अवस्था समझते हैं और स्वयं अपनी भक्ति व्योम ने कहा--कर्मी मनुष्य कम के कठिन नियमां को नान कर चलता है। अतएव कर्मों के नियम पालन में लग रहने के कारण समाज के बहुत से छोटे छोटे नियम उससे छूट जाते हैं. परन्तु वह अकर्मण्य नहीं बनता । जो आफिस जान के लिए दौड़ा जा रहा है उससे क्या कोई ऐसी आशा कर सकता है कि वह ठहर कर थोड़ी देर तक हमारे साथ शिष्टालाप करेगा ? अँगरज माली जब कपड़े उतार कर और कमीज़ की आतीन चढ़ा कर बाग का काम करने लगता है उस समय कोई ऊँचे घराने की स्त्री उस माली को देख कर लजित नहीं होती. क्योंकि लजित हानं का कोई कारण नहीं है । परन्तु हम लोग जब किसी काम-काज के न रहने से दिन भर अपने घर के सामने वाली सड़क पर बड़ा पेट खाले इधर उधर धूमा करते हैं उस समय संमार के सामने किम वैराग्य और किस आध्यात्मिकता के मासे अपनी असभ्यता