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विचित्र प्रबन्ध।

और काम-काज से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसी कारण वह आकर हम लोगों के मन को विश्राम देने के लिए छुट्टी देता है। मेघ के आते ही मन स्वाधीन हो जाता है, वह किसी बन्धन को मानना नहीं चाहता। स्वामी के शाप से निर्वासित यक्ष का विरह तब जाग उठता है। स्वामी-भृत्य का सम्बन्ध तथा संसार के सम्बन्ध आदि सभी सम्बन्धों को मेघ आकर भुला देता है। उस समय हृदय सब नियमों को तोड़ कर अपने लिए स्वतन्त्र मार्ग तैयार करने का प्रयत्न करता है।

मेघ अपने नित-नये चित्र, अन्धकार, गर्जन, बर्षण आदि के द्वारा परिचित पृथिवी के ऊपर अपरिचित का आभास डाल देता है; एक बहुत पुराने समय की और बहुत दूर के देश की निविड़ छाया फैला देता है। उस समय परिचित पृथिवी के हिसाब से जो असंभव था वही संभवपर हो जाता है। उस समय परदेशी की स्त्री यह मानना नहीं चाहती कि काम-काज में फँसे रहने के कारण उसका प्रियतम घर नहीं आ सकता। वह संसार के कठिन नियमों को जानती है, परन्तु वह जानना केवल जान लेना ही है। इस पर उसका विश्वास नहीं जमता कि उस नियम के अनुसार आज भी इस वर्षा के समय में काम होता है।

मैँ यही बात सोच रहा था; भाग के द्वारा यह भारी पृथ्वी― सदा की पृथ्वी―मेरी दृष्टि में छोटी होगई है। जितना मैंने उसे पाया है उतना ही उसे जानता हूँ। अपने भोग के बाहर उसके अस्तित्व को ही मैं नहीं मानता। मेरा जीवन दृढ़ता के साथ बँध गया है, साथ ही उसने अपने व्यवहार के उपयोगी आवश्यक