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विचित्र प्रबन्ध।

कर कहानी मेँ हम बाधा नहीं डालते थे। राजा का नाम शिलादित्य या शालिवाहन था; काशी, कांची, कन्नौज, कोशल, अङ्ग-वङ्ग-कलिङ्ग आदि में ठीक कहाँ पर उसकी राजधानी थी, ये सब इतिहास और भूगोल से संबंध रखनेवाले तर्क हमारे निकट अत्यन्त तुच्छ थे। एक राजा था, यह सुनते ही हृदय पुलकित हो जाता था, और वह चारों ओर से खिँच कर उस ओर लग जाता था।

किन्तु आज-कल के पाठक जैसे पहले ही से कमर कसे तैयार रहते हैं। वे पहले ही से लेखक को मिथ्यावादी समझ बैठते हैं। अतएव वे बहुत ही सयाने की तरह मुखमण्डल गम्भीर बनाकर पूछते हैं कि लेखक महाशय, तुम कहते हो कि एक राजा था, पर यह तो बतलाओ कि वह राजा था कौन?

लेखक भी समयानुसार सयाने हो गये हैं। वे भारी प्रन्ततत्त्व- वेत्ता पण्डित की तरह मुखमण्डल को चौगुना गम्भीर और मण्डलाकार बनाकर कहते हैं―एक राजा था और उसका नाम था अजातशत्रु।

फिर पाठक आँख बन्द करके पूछता है―अजातशत्रु! भला यह अजातशत्रु कौन था?

लेखक उसी प्रकार अविचल भाव से कहता है―"अजात- शत्रु नाम के तीन राजा थे। एक अजातशत्रु ईसा के जन्म के तीन हज़ार वर्ष पहले उत्पन्न हुआ था और वह दो वर्ष आठ महीने की अवस्था मेँ ही मर गया। दुःख की बात है कि उसके जीवन का विस्तृत विवरण किसी भी ग्रन्थ में लिखा नहीं मिलता।" अन्त को दूसरे अजातशत्रु के संबंध में दस पाँच ऐतिहासिक विद्वानों