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बन्द घर।

पृथिवी मृत्यु को भी अपनी गोद में स्थान देती है और जीवन को भी। मृत्यु की गोद में दोनोँ ही भाई-बहन के समान एक साथ क्रिड़ा करते हैं। जीवन और मृत्यु का प्रवाह देखने से, तरङ्गों पर अन्धकार और प्रकाश की क्रीड़ा देखने से, हम लोगों को कुछ भी डर नहीं लगता। पर बँधी हुई मृत्यु और रुधी हुई छाया देखते ही डर लगता है। जहाँ मृत्यु की गति है, जहाँ मृत्यु जीवन का हाथ पकड़ कर प्रत्येक ताल पर नाचती है, वहाँ मृत्यु का भी जीवन है। वहाँ मृत्यु भयानक नहीं है। चिह्न के भीतर बँधी हुई गतिहीन मृत्यु ही यथार्थ मृत्यु है; वही भयानक है। इसी कारणा समाधि-मन्दिर भय का निवास स्थान है।

पृथिवी में जो आता है वह जाता है। इस प्रवाह से ही संचार के स्वास्थ्य की रक्षा होती है। यह आना-जाना ज़रा भी बन्द होने से जगत् का सामञ्जस्य नष्ट हो जाता है। जीवन जैसे इता है वैसे ही चला जाता है। मृत्यु भी जैसे आती है वैसे ही चली जाती है। उसे पकड़ कर रखने की चेष्टा क्यों करते हो? हृदय को पत्थर बनाकर, उस पत्थर में उसको दबा कर, क्यों रखते हो? उससे केवल स्वास्थ्य का नाश ही होगा। छोड़ दो, उसको जाने दो, जीवन-मृत्यु के प्रवाह में रुकावट न डालो। हृदय के दानों द्वार खोल दो। प्रवेश के द्वार से लोग उसमें प्रवेश करें और निकलने के द्वार से निकल जायें।

किन्तु इस घर के दोनों द्वार बन्द हैं। जिस दिन इस घर के द्वार पहले पहल बन्द हुए थे उस दिन का वह पुराना अन्धकार आज तक इस घर में वर्तमान है। घर के बाहर दिन पर दिन और