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पृष्ठ:विदेशी विद्वान.djvu/५७

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मुग्धानलाचार्य्य

आचार्य मुग्धानल शायद चाहते हैं कि “नेटिव” संस्कृता- ध्यापक एकदम ही कालेजों से निकाल बाहर किये जायँ। उनके निकल जाने से पुस्तके भी अच्छी चुनी जाने लगेंगी और परीक्षा-पत्र भी अच्छे बनने लगेंगे। एक बात और भी होगी। यह जो बी॰ ए॰, एम॰ ए॰ वालों को काव्यप्रकाश, वेदान्त- सूत्रभाष्य और न्याय पढ़ाना पड़ता है सो भी पढ़ाना बन्द हो जायगा। योरप के दिग्गज पण्डितो को ये विषय पढ़ाना मानो लोहे के चने चाबना है। कई बार इन लोगो ने कोशिश करके इनका अध्यापन बन्द कराना चाहा; पर कामयाबी न हुई। सो यह बात उन्हे अब तक खटक रही होगी। साहब आचार्यों की राय है कि ये विषय संस्कृत के साधारण साहित्य के बाहर हैं। क्यो न हो! पर विलायत के विद्यालयों मे जो ग्रीक भाषा पढ़ाई जाती है, अरिस्टाटल और प्लेटो के दार्श- निक ग्रन्थ उसके साहित्य के ठीक भीतर हैं। क्यों? इस लिए कि उन्हे साहब लोग पढ़ा सकते हैं; पर गौतम, शङ्करा- चार्य और मम्मट के ग्रन्थों को नहीं पढ़ा सकते।

डाक्टर सेकडॉनल का सबसे बड़ा आक्षेप इस देश के संस्कृतज्ञों पर यह है कि वे वैज्ञानिक किंवा शास्त्रीय रीति (Scientific method) से व्याकरण और पुरातत्त्वादि विषय पढ़ना-पढ़ाना नहीं जानते। अतएव जिन्हे इन विषयों का अध्ययन करना हो उन्हें विलायत ही से संस्कृत पढ़कर इस देश मे आना चाहिए। बहुत दुरुस्त! “यथाज्ञापयति देवः!”