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विदेशी विद्वान्


डाक्टर भाऊदाजी, डाक्टर भाण्डारकर, डाक्टर भगवानलाल इन्द्रजी, डाक्टर राजेन्द्रलाल मित्र, पण्डित श्याम शास्त्रो आदि इस देश के विद्वान संस्कृत पढ़ने आक्सफ़र्ड गये थे! जो कुछ थोड़ा-बहुत काम इन लोगों ने किया है सब आक्सफ़र्ड के “बाँउन प्रोफ़ेसर आव् संस्कृत” के शिक्षा-प्रसाद से!

मुग्धानलाचार्य्य ने इसी तरह के कितने ही निर्मूल आक्षेप इस देश के संस्कृतज्ञों पर करके यह सिद्ध करना चाहा है कि―“सिविल सर्विस” वाले आपसे संस्कृत पढ़वाकर यहाँ भेजे जाया करें और अँगरेज़ों को यहाँ कालेजों में अच्छी- अच्छी तनख़्वाहो ही पर प्रोफ़ेसरी दी जाया करे। सारा मतलब यह कि आपका क्लास भरा रहे और आपके देशवासियो का पेट। स्वार्थ, तेरी जय! आपकी स्वार्थपर और निन्दामूलक एक-एक बात का उत्तर श्रीयुक्त श्रीधरजी ने अँगरेज़ी मे दे दिया है। इस बात को कोई डेढ़ वर्ष हुए। अतएव आचार्य्य मुग्धानल की कालकूट-गर्भित उक्तियों का निदर्शन मात्र ही यहाँ पर बस होगा।

आचार्य्य मुग्धानल की दो पुस्तकें यहाँ के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं। एक तो आपका संस्कृत-व्याकरण, दूसरा संस्कृत-भापेतिहास। आश्चर्य्य है, ऐसे भारतीय-पण्डित-द्वेपी विद्वान् की पुस्तकें भारत ही में प्रचलित की गई। इन पुस्तकों में बहुत सी बातें समालोच्य हैं। आपका संस्कृवेतिहास और लोगों के इतिहास की अपेक्षा ज़रूर अच्छा है; पर उसमें भी