पृष्ठ:विदेशी विद्वान.djvu/६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६०
विदेशी विद्वान्

अर्थात् किसी अपरिचित के इस बालक का मेरे शरीर में केवल एक-दो जगह स्पर्श हो जाने ही से मुझे इतना आनन्द हुआ, तो जिस भाग्यशाली की गोद में बढ़कर यह इतना बड़ा हुआ है उसके हृदय में यह न मालूम कितना आनन्दातिरेक पैदा करता होगा।

इसका अनुवाद आचार्य मुग्धानल ने किया है—

If now the touch of but a stranger's child
Thus sends a thrill of joy throughout all my limbs,
What transports must be wakened in the soul
Of that blest father from whose ]oins he sprang!

इसकी पहली दो सतरों का मतलब है कि किसी अपरिचित मनुष्य के इस लड़के के स्पर्श ने मेरे सब अङ्गो में सुख की सनसनाहट पैदा कर दी है। आचार्य्य ने "गात्रेषु" का अन्वय "सुख" के साथ किया है, "स्पृष्टस्या" के साथ नहीं; पर हमारी तुच्छ बुद्धि में यह भारी भूल है। कालिदास का भाव दुष्यन्त के कुछ अङ्गों में उस बालक के शरीर का स्पर्श हो जाने से है; सब अङ्गों में सुख होने से बिलकुल नहीं है। प्रिय वस्तु को देखने अथवा छूने से सुख सारे शरीर को होता ही है। उसके कहने की क्या ज़रूरत? उँगली में आलपीन चुभ जाने से वेदना का अनुभव यदि सारे शरीर को होता है