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पृष्ठ:विदेशी विद्वान.djvu/८९

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अलबरूनी


लाम विजयी हो रहा था। बीच-बीच मे ईसाइयों और मुसल- मानों में भी झगड़ा हो जाता था। इससे ईसाई लोग एशिया से भागे जा रहे थे। इस विप्लव के समय मे दर्शनशास्रों की चर्चा की जगह बाहुबल और शान्त समालोचना की जगह तेज़ तलवार चल रही थी। इससे कुछ दिन के लिए उच्च शिक्षा विलुप्त हो गई थी। अशिक्षित सेना-दल प्राधान्य और प्रतिष्ठा- लाभ कर रहा था। इसी लिए विजयोन्मत्त मुसलमान लोग भारतवर्ष को काफि़रस्तान कहने में कुछ भी सङ्कोच न करते थे। भारतवर्ष ही के विपुल ज्ञान-भाण्डार ने अरबी-साहित्य की प्राण-प्रतिष्ठा की है और उसके द्वारा जंगली विदुइनों को विद्वान् बनाया है। इस बात को अलबरूनी की तरह दो-चार विद्वानों के सिवा और कोई न जानता था और सुनने पर भी विश्वास न करता था। अलबरूनी भारतवर्ष पर क्यों अनुरक्त था और बाल पक जाने पर क्यो संस्कृत सीखी थी, यह बात समझने के लिए अरबी-साहित्य की आलोचना करना चाहिए।

यद्यपि अरबी भाषा बहुत पुरानी है तथापि अरबी-साहित्य ग्रीक और हिन्दू-साहित्य की तरह बहुत पुराना नहीं। कुछ दिन पहले बहुत लोग इस बात को न मानते थे । परन्तु जर्मनी के पुरातत्त्ववेत्ताओं ने इस बात को सत्य सिद्ध कर दिया है।

अरबी के प्राचीन साहित्य में केवल कविता ही की अधिकता थी। मरुभूमि अरब के निवासी उसी को यथेष्ट समझते थे। कुछ दिन बाद कुरान और हदीस भी उसमें मिल गई।