पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१६०

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१५२ विद्यापति । राधा । २६८ कोमल कमल काञि चिहि सिरिजल मो चिन्ता पि लागी । चिन्ता भरे नीन्दै नहि सोअञो रअनि गमाव जागी ॥ २ ॥ वरकामिनि हे काम पिआरी निसि अन्धियारि डरासी । गुरु नितम्ब भरे चलहि न पारसि कामक पीड़लि जासी ॥ ४ ॥ साझोन मेह झिम झिमि वारिसए बहल भमए जल पूरे । बिजुरि लना चक चक मक कर डीठी न पसरए दूरे ॥ ६ ॥ सखी । २६.६ साख हे अइसनि निसि अभिसार । तोहि तेज करए के पार ॥ ३ ॥ भमए भुअङ्गम भीम । पङ्के पूरल चौसीम ॥ ४ ॥ दिग मग देखअ घोर । पएर दिअ बिजुरि उजोर ॥ ६ ॥ सुकवि विद्यापति गाव । महघ मदन परथाव ॥ ८ ॥