पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१८२

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१७४ विद्यापति । राधा । ३३८ चल चल माधव मुझ परनाम । चातुरि न रह चतुरक ठाम ॥ २ ॥ अधरक जोति मलिन भइ गेल । तुय अनुरूप रमनि हरि लेल ॥ ४ ॥ सिंदुरक विन्दु ललाटहि लागि । सोपलि सुन्दरि निज अनुरागि ॥ ६ ॥ प्रति अङ्के रति चिन बेकत होय । करतल चॉद झपावय कोय ॥ ८॥ राधा । ३३६. आध मुदित भेल दुहु लोचन वचन बोलत अधि आधे । रतिक आलसे सामतनु झामर हेरि पुरल मोर साधे ॥ २ ॥ माधव चल चल चल तन्हि ठामे । जसु पद् जावक हृदय भूखन अवहुँ जपत तसे नामे ॥ ४ ॥ कत चन्दन कत मृगमद कुंकुम तुय कपोल रहु लागि । देखि अनुरुप साति कयल विहि अतए मानिय रहु भागि ॥ ६ ॥