पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२०८

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विद्यापति । तुय मुख हदि अवगाइ । विलपय अवधि न पाइ ॥८॥ जे जग जीवन जान । तकर जलत परान ॥१०॥ भूपति कि कहब तोय | तोहे से पुरुख वध होय ॥१२॥ दूती । ३८१ तोहर विरह वेदन वाउर सुन्दर माधव मोर । खने अचेतन खने सचेतन खने नाम धरु तोर ।।२।। रामा है तो बड़ कठिन देह ।। गुन अपगुन न बुझि तेजलि जगत दुलह नेह ॥४॥ तोहर कहिनी कहइते जागये शुतइ देखय तोय । ए घर बाहिर धैरज नहि धर पथ निरखि रोय ॥६॥ कत परवाधि न माने रहसि न कर भेाजन पान । काठ मुरति ऐसन अछ्य कवि विद्यापति भान ॥८॥ ठूती । ३८२ नयनक नीर निझर झरय चान्द निरखये ताव । तोहर वन सुमरि तैखन मुछि पड़ि जावे ॥२॥ रामा है तेजह कठिन मान ) पुरुख विरह दुःसह दारुन इ वैरि राख परान ॥४॥