पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२१८

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२०४ विद्यापति ।। दूती । ३६६ सुन माधव राधा सोयाधिनि भेल । यतनहि कत परकार बुझाओल तइओ समति नहि देल ॥२॥ तोहर नाम सुनय जव सुन्दर श्रवण मुदइ दुइ पानि ।। तोहर पिरात जे नव नव मानय से पुछय अब न बानि ॥४॥ तोहर केश कुसुम तृण ताम्बुल धयलहु राहिक आर्गे । कोपे कमलमुखि पलटि न हेरल बैसलि विमुख विरागे ॥६॥ एहन चुझि कुलिश सार तसु अन्तर कैसे मिटायब मान ।। विद्यापति कह वचन अब समुचित आपे सिधारह कान ॥८॥ ---.----- दूती । | ४०० गेलॉह पुरुव पेमे उतरो न देङ । दाहिन वचन बाम कई लई । " ए हरि रस दय रुसलि रमनी । हम तह न आउति कुञ्जरगमना। गइये मनावह रह समाजे । सव तह बड़ थिक ऑखिक लाज जै किछु कहलक से अछि लेले । भल कय बूझब अपनहि गेले ॥६॥ भनइ विद्यापति नारी सोभावे । रुसलि रमनि पनु पुनमत पावे ॥१०॥ दूती । ४०१ माधव दुर्जय मानिनि मानि । विपरित चरित पेखि चकित भेल न पछत आधु वानि ॥२॥